ठाकरे भाइयों का ऐतिहासिक मिलन: महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़
महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ आया है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने 'मराठी अस्मिता' के लिए मिलकर एक नई राह चुनी है। यह ऐक्य एकनाथ शिंदे के लिए एक कठिन परिस्थिति पैदा कर सकता है। शिंदे गुट के लिए यह एक गंभीर चुनौती बन सकती है।
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शनिवार को महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला. 2005 में अलग हुए ठाकरे परिवार के उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ आए. दोनों ने एक मंच पर हाथ मिलाकर 'मराठी अस्मिता' के लिए आवाज उठाई. दो दशक बाद उनका यह मिलन महाराष्ट्र की राजनीति को नया रूप दे सकता है. इस घटना से कई सवाल उठ रहे हैं, जैसे कि ठाकरे बंधुओं की एकता से किसे नुकसान होगा, एकनाथ शिंदे पर इसका क्या असर होगा, और बीजेपी के लिए यह गठबंधन फायदेमंद होगा या नुकसानदायक?
शनिवार को हुई इस बड़ी घटना के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में कई तरह की बातें हो रही हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि ठाकरे भाईयों के एक होने से किसको नुकसान होगा. खासकर, एकनाथ शिंदे के लिए यह खबर अच्छी नहीं है. शिंदे को इससे नुकसान हो सकता है. बाल ठाकरे ने शिवसेना बनाई थी. शिंदे अब उस विरासत पर अपना हक जताते हैं. लेकिन, उद्धव और राज के एक होने से शिंदे का दावा कमजोर पड़ सकता है. लोगों को लग सकता है कि असली शिवसेना तो ठाकरे परिवार के साथ है.
शिंदे को अब लोगों को यह समझाने में मुश्किल होगी कि वे "बाहरी" या "गद्दार" नहीं हैं. उन्हें अपने इलाके ठाणे में भी कड़ी टक्कर मिल सकती है. सिर्फ ठाणे ही नहीं, महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में भी शिंदे के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. यह गठबंधन ऐसे समय पर हो रहा है जब नगर निकाय के चुनाव होने वाले हैं. मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है. अगर शिंदे का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, तो उनकी ताकत कम हो सकती है. शिंदे पर्दे के पीछे रहकर राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं. अब उन्हें अपनी जमीन बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
उद्धव और राज का मिलना शिंदे के लिए इसलिए भी चिंता की बात है क्योंकि सरकार में उनकी बात कम सुनी जा रही है. शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है. लेकिन, बीजेपी के कई नेता उन्हें लंबे समय तक साथ रहने वाला नहीं मानते हैं. वे शिंदे को सिर्फ एक सहयोगी के तौर पर देखते हैं. एकनाथ शिंदे की एक और चिंता यह है कि बीजेपी उन्हें हमेशा के लिए अपना साथी नहीं मानती. उन्हें लगता है कि शिंदे बस कुछ समय के लिए ही उनके साथ हैं.
शनिवार को राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आए. इसे "विजय रैली" कहा गया. इस रैली में दोनों नेताओं ने 2005 के बाद पहली बार एक साथ मंच साझा किया. उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़कर मराठी अस्मिता को मजबूत करने का नारा दिया. राजनीति के जानकारों का मानना है कि ठाकरे भाईयों का यह मिलन महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है. इससे कई लोगों को फायदा होगा तो कई लोगों को नुकसान भी हो सकता है. अब देखना यह है कि आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीति किस करवट बैठती है.
शिंदे गुट के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है. उन्हें अब अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा. साथ ही, उन्हें यह भी साबित करना होगा कि वे बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं. चुनाव से पहले इस तरह का गठबंधन होना निश्चित रूप से दूसरी पार्टियों के लिए खतरे की घंटी है. सभी पार्टियां अब अपनी रणनीति को नए सिरे से बनाने में जुट गई हैं.
शनिवार को हुई इस बड़ी घटना के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में कई तरह की बातें हो रही हैं. सबसे बड़ा सवाल यही है कि ठाकरे भाईयों के एक होने से किसको नुकसान होगा. खासकर, एकनाथ शिंदे के लिए यह खबर अच्छी नहीं है. शिंदे को इससे नुकसान हो सकता है. बाल ठाकरे ने शिवसेना बनाई थी. शिंदे अब उस विरासत पर अपना हक जताते हैं. लेकिन, उद्धव और राज के एक होने से शिंदे का दावा कमजोर पड़ सकता है. लोगों को लग सकता है कि असली शिवसेना तो ठाकरे परिवार के साथ है.
शिंदे को अब लोगों को यह समझाने में मुश्किल होगी कि वे "बाहरी" या "गद्दार" नहीं हैं. उन्हें अपने इलाके ठाणे में भी कड़ी टक्कर मिल सकती है. सिर्फ ठाणे ही नहीं, महाराष्ट्र के दूसरे शहरों में भी शिंदे के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. यह गठबंधन ऐसे समय पर हो रहा है जब नगर निकाय के चुनाव होने वाले हैं. मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है. अगर शिंदे का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, तो उनकी ताकत कम हो सकती है. शिंदे पर्दे के पीछे रहकर राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं. अब उन्हें अपनी जमीन बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
उद्धव और राज का मिलना शिंदे के लिए इसलिए भी चिंता की बात है क्योंकि सरकार में उनकी बात कम सुनी जा रही है. शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है. लेकिन, बीजेपी के कई नेता उन्हें लंबे समय तक साथ रहने वाला नहीं मानते हैं. वे शिंदे को सिर्फ एक सहयोगी के तौर पर देखते हैं. एकनाथ शिंदे की एक और चिंता यह है कि बीजेपी उन्हें हमेशा के लिए अपना साथी नहीं मानती. उन्हें लगता है कि शिंदे बस कुछ समय के लिए ही उनके साथ हैं.
शनिवार को राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आए. इसे "विजय रैली" कहा गया. इस रैली में दोनों नेताओं ने 2005 के बाद पहली बार एक साथ मंच साझा किया. उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़कर मराठी अस्मिता को मजबूत करने का नारा दिया. राजनीति के जानकारों का मानना है कि ठाकरे भाईयों का यह मिलन महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है. इससे कई लोगों को फायदा होगा तो कई लोगों को नुकसान भी हो सकता है. अब देखना यह है कि आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीति किस करवट बैठती है.
शिंदे गुट के लिए यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है. उन्हें अब अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा. साथ ही, उन्हें यह भी साबित करना होगा कि वे बाल ठाकरे की विरासत को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं. चुनाव से पहले इस तरह का गठबंधन होना निश्चित रूप से दूसरी पार्टियों के लिए खतरे की घंटी है. सभी पार्टियां अब अपनी रणनीति को नए सिरे से बनाने में जुट गई हैं.